Wednesday, July 21, 2010

हिमाचल में अमरनाथ


तीर्थ यात्राएं आस्था की प्रतीक मानी जाती हैं, लेकिन जिस आस्था में रोमांच भी शामिल हो जाए तो यात्रा अविस्मरणीय बन जाती है। मणिमहेशकी यात्रा भी आस्था व रोमांच का प्रतिनिधित्व करती है। छोटा कैलाश के नाम से जानी जाने वाली, 18564फुट ऊंची चोटी को शीश नवानेहर वर्ष हजारों शिव भक्त दुर्गम व जोखिम भरे सफर को तय करके पहुंचते हैं। हिमाचल प्रदेश में चम्बाजिले के जनजातीय क्षेत्र भरमौरस्थित बुढहलघाटी की यह सबसे ऊंची चोटी है, जहां शिव का निवास माना गया है। इस चोटी के अंचल में समुद्र तल से चौदह हजार फुट की ऊंचाई पर शिव चौगान कहा जाने वाला एक ढलानदारखुला भू-भाग है, जिसमें करीब डेढ सौ मीटर परिधि की डल झील है। इस झील में डुबकी लगाकर ही यात्रा की इतिश्री होती है और सांसारिक यात्रा की समाप्ति पर हम स्वर्ग में दस्तक दे सकते हैं, ऐसी मान्यता है। मणिमहेशके लिए वैसे तो मई से अक्टूबर तक श्रद्धालु जाते रहते हैं, लेकिन श्री कृष्ण जन्माष्टमी और राधाष्टमीको विशेष पर्व होते हैं।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को छोटा न्होणलघु स्नान होता है, जिसमें ज्यादातर लोग जम्मू-कश्मीर के भद्रवाहइलाके से आते हैं। और नंगे पांव चलते हुए ये लोग छोटा न्होणसे तेरह दिन पहले ही यात्रा शुरू कर देते हैं। प्रमुख पर्व राधाष्टमीको ही होता है जब पारम्परिक मणिमहेशयात्रा यहां पहुंचती है। मणिमहेशपहुंचने के तीन रास्ते हैं। एक रास्ता लाहौलकी ओर से है और दूसरा कांगडा से। लेकिन ये दोनों रास्ते पैदल नापने पडते हैं और जोखिम अत्याधिकहै। कांगडा से अगर हम जाएं तो जालसूदर्रा भी हमें पार करना पडेगा। लेकिन आम श्रद्धालु के बूते की यह बात नहीं, यहां के मूल निवासी गद्दियों को ही ऐसा अभ्यास है। जाहिर है, मणिमहेशपहुंचने के लिए कांगडा और लाहौलकी अपेक्षा चम्बासे जाने वाला रास्ता आसान है, लेकिन रोमांच इस सफर में भी कम नहीं। चम्बासे भरमौरहोते हुए हडसरतक 64किलोमीटर का सफर बस योग्य सडक से किया जा सकता है। हडसरइस रास्ते का अन्तिम गांव भी है और यात्रा का एक पडाव भी। आगे कोई आबादी नहीं। हडसरमें ही मणिमहेशके पुजारी रहते हैं। हडसरसे सीधी और खडी चढाई है। आसमान साफ रहे तो कोई विशेष जोखिम नहीं है। हडसरसे सात किलोमीटर दूर धनछो आता है जहां एक रम्य जल प्रपात है। मान्यता है कि भस्मासुर ने शिव से यह वरदान पा लेने के बाद कि वह जिसके सिर पर भी हाथ रख देगा, वही स्वाहा हो जाएगा, पहला निशाना शिव को ही बनाना चाहा। तब इसी जलप्रपात में शिव ने शरण ली थी। यात्रा पर चले श्रद्धालु अब यहां पडाव भी डालते हैं और स्नान भी करते हैं। अगले दिन प्रात:मणिमहेशके लिए फिर श्रद्धालु चल पडते हैं।

धनछोसे मणिमहेशअब सात किलोमीटर रह जाता है और रास्ते भी दो हैं। एक खच्चररास्ता और दूसरा बंदरघाटीव भैरोघाटीको लांघ कर। घाटियों का रास्ता चूंकि अत्याधिकजोखिम भरा है, अत:रोमांच प्रेमी श्रद्धालु इस ओर रुख करते हैं, बाकी लोग खच्चररास्ते को ही नापते हैं। रास्ते में वन औषधियों की महक भी श्रद्धालुओं को ताजादम किए रखती है, लेकिन जडी-बूटियों की पहचान में अगर कोई श्रद्धालु गलती खा जाए और किसी जहरीली बूटी को सूंघ ले तो वह बेहोश भी हो सकता है। मणिमहेशसे थोडा पीछे गौरी कुण्ड और शिव करौतरीनामक स्थल आते हैं। महिलाएं गौरी कुण्ड और पुरुष शिव करौतरीमें स्नान करते हैं। मणिमहेशकी डल झील के पास पहुंचते ही यात्रियों में शामिल चेले सर्वप्रथम झील के बर्फानी जल में छलांग लगा देते हैं और देखते ही देखते झील पार कर जाते हैं। जो चेला सर्वप्रथम झील पार करता है, वह आगामी वर्ष का प्रमुख चेला कहलाता है। लेकिन होता यूं भी है कि जब चेले झील में कूद जाते हैं, तो श्रद्धालु भी उनके पीछे छलांग लगा देते हैं, स्नान के लिए कम, चेलों को पकडने के लिए अधिक। मान्यता है कि चेले को सर्वप्रथम पकडना बडा शुभ होता है और श्रद्धालु की वैतरणी भी पार हो जाती है। मणिमहेशपर्वत वर्ष भर गहरे धुंध के आवरण में लिपटा रहता है, अगर किसी पर्व पर श्रद्धालुओं को दर्शन दे जाए तो बडा शुभ माना जाता है। जिस दिन मणिमहेशमें प्रमुख स्नान पर्व होता है, उस रात मणिमहेशपर्वत से एक दिव्य प्रकाश फूटता भी दिखाई देता है। इसे प्रकृति का अजूबा भी माना जा सकता है और चमत्कार भी।

सबके हैं बाबा बर्फानी


बाबा बर्फानी गुफाकी खोज 16वींशताब्दी में एक मुसलमान गडरिएने की थी। हालांकि यात्रा की संपूर्ण व्यवस्था श्रीअमरनाथश्राइनबोर्ड संभालता है, लेकिन आज भी चढावे का चौथा हिस्सा उस परिवार के वंशजों को जाता है। अस्वस्थ और चलने में अक्षम यात्रियों को पौनी पर बिठाकर पवित्र गुफातक ले जाने वाले और सामान ढोने वाले कुली आदि सभी मुस्लिम संप्रदाय के होते हैं। उनके लिए आर्थिक संबल प्रदान करने वाली इस यात्रा का वे साल भर इंतजार करते हैं। श्रद्धालुओं की सेवा में लगे लंगर वालों के चेहरे पर किसी धर्म या जाति के चिह्न नहीं, बल्कि शिव की भक्ति के भाव नजर आते हैं। [शुक्ल पक्ष में बढता है शिवलिंग]समुद्र तल से 13,600मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुफाजम्मू-कश्मीर के उत्तर-पूर्व में है। 16मीटर चौडी और लगभग 11मीटर लंबी यह गुफाभगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। इस गुफामें प्राकृतिक हिमलिंगबनता है। गुफामें जगह-जगह से पानी टपकता रहता है, जिससे छोटे-बडे कई हिम खंडों का निर्माण हो जाता है। भगवान शिव का हिमलिंगप्राकृतिक रूप से ठोस बर्फ का होता है। शुक्ल पक्ष के दौरान इस हिमलिंगका आकार अपने आप बढने लगता है, जबकि कृष्ण पक्ष में चंद्रमा के आकार के साथ इसका आकार भी घट जाता है।

[हर आम और खास की यात्रा] बाबा बर्फानी की इस पवित्र यात्रा में सभी श्रद्धालु एक बराबर होते हैं। यहां कोई भी वीआईपी नहीं होता। सभी को 15रुपये के यात्रा पंजीकरण के साथ ही यात्रा करनी होती है। ठहरने के लिए जम्मू और पहलगाममें सभी यात्रियों के लिए एक समान निशुल्क व्यवस्था होती है। इस बार से हेलीकॉप्टरका किराया 2450रुपये होने की वजह से आम यात्री भी इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं।

[प्रकृति से मिलाप की यात्रा] यात्रा की शुरुआत आधार शिविर जम्मू से होती है। जम्मू का मौसम धूप और गर्मी वाला होता है, वहीं जम्मू से ऊधमपुरकी तरफ बढते हुए हवा में हल्की नमी का एहसास होने लगता है। यात्रा की औपचारिक शुरुआत पहलगामसे होती है। यात्रा मार्ग में पडने वाली शेषनाग झील नीले दर्पण के समान लगती है, वहीं लिद्दरदरिया की अनियंत्रित लहरें यात्रियों को अपना वेग दर्शाती हैं। पिस्सुटॉपकी चढाई चढते हुए पहाडों की कठिन जिंदगी का अनुभव होता है। यहां आकर प्राकृतिक और आध्यात्मिक सुख का अनुभव होता है।

मां छिन्नमस्तका ने दिए दर्शन


दशमहाविद्याओं में से एक जगदंबा छिन्नमस्तका ने शनिवार को अपने दर्शन देकर श्रद्धालु भक्तों को धन्य कर दिया। सिद्ध पीठ रजरप्पा में शनिवार को प्रात: मंगला आरती के बाद मंदिर का पट खुलते ही श्रद्धालुओं की भीड उमड पडी और पहले दर्शन करने की होड मच गई। भीड अत्यधिक रहने पर यह बताना कठिन हो गया कि मां भगवती के पहले दर्शन करने वाला कौन था।

श्रद्धालुओं को जैसे ही पता चला कि मां भगवती का पट खोल दिया गया है, झारखंड, बिहार, बंगाल आदि विभिन्न प्रांतों से आए श्रद्धालु मां भगवती के दरबार में अहले सुबह से ही पहुंचने लगे। धीरे-धीरे श्रद्धालुओं की लंबी कतार लग गई। अन्य दिनों की तरह आज भी जगह-जगह श्रद्धालुओं की सुरक्षा में महिला बटालियन एवं जैप के जवान तैनात थे। मंदिर में प्रवेश करने वाले श्रद्धालुओं की जांच-पडताल चेक पोस्ट बनाकर की जा रही थी। मां का पट खुलते ही नेता-विधायक अधिकारी व नौकरशाह मंदिर में माथा टेक कर माता के नए स्वरूप का दर्शन करने के लिए घंटों तक खडे देखे गए। विभिन्न प्रदेशों से मां की पूजा-अर्चना एवं नए स्वरूप का दर्शन करने आए श्रद्धालु दामोदर-भैरवी संगम में स्नान कर हाथ में प्रसाद की थाली लेकर अपनी बारी की प्रतीक्षा करते रहे।

मंदिर की सुरक्षा में जुटी पुलिस

रजरप्पा [रामगढ]। मां छिन्नमस्तका मंदिर में 68 पुलिस अधिकारियों, 36 दंडाधिकारी एवं तीन सौ जवानों को तैनात किया गया है। रजरप्पा मंदिर में इंस्पेक्टर गरीबन पासवान, राजेश सिन्हा, एएसआई सत्य नारायण ठाकुर, श्लोक सिंह, उदय कुमार भगत, नरेश मिश्रा आदि पुलिस अधिकारी व दंडाधिकारी तैनात हैं। शनिवार को भी श्रद्धालुओं की सुरक्षा में झारखंड पुलिस महिला बटालियन जगह-जगह पर तैनात थे। आज भी रजरप्पा मंदिर में पुलिस के कई आला अधिकारी भी आए साथ ही साथ जगह-जगह पर घटना को अंजाम देने वाले अपराधियों को धर दबोचने के लिए पुलिसकर्मियों को जांच-करते देखा गया। रविवार-सोमवार तक पुलिसकर्मी लौट सकते हैं, लेकिन रजरप्पा मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था के लिए कुछ चौकीदार को तैनात करने का आदेश पुलिस प्रशासन की ओर से दिया गया है। मंदिर में तैनात सभी जवानों के वापस लौटने पर होमगार्ड के दस जवानों के कंधे पर होगी सुरक्षा की जिम्मेवारी। हालांकि तैनात जवानों को स्थानीय पुलिस प्रशासन की ओर से हमेशा सहयोग मिलता रहेगा।

आचार्य व तांत्रिक लौटे

रजरप्पा मां छिन्नमस्तका मंदिर में तीन दिवसीय अनुष्ठान व मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद शनिवार की सुबह-सुबह बनारस से आए आचार्य दीपक मालवीय के नेतृत्व में 21 आचार्य एवं कोलकाता के सात तांत्रिक वापस लौट गए।

अनुसंधान में जुटी पुलिस

रजरप्पा मंदिर में दो जुलाई को घटी घटना की जांच-पडताल को लेकर पुलिस व सीआईडी के अधिकारियों ने नए सिरे से उद्भेदन करने में जुट गए है। हालांकि रजरप्पा मंदिर तीन दिवसीय अनुष्ठान के दौरान अनुसंधान में थोडी शिथिलता आई परंतु आज पुलिस पुराने तेवर में नजर आई। क्षेत्र के श्रद्धालु, ग्रामीण व दुकानदार पुलिस को आशाभरी निगाहों से देख रहे हैं। इन्हें उम्मीद है कि पुलिस अब घटना में शामिल लोगों को खोजकर निकाल लेगी। इधर सीआइडी जांच टीम के कई अधिकारी कोलकाता, बनारस, जयपुर आदि जगहों में छापेमारी कर मामले का उद्भेदन करने में लगा है। ज्ञात हो कि दो जुलाई को रजरप्पा मां छिन्नमस्तका मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश कर मूर्ति को खंडित कर अनावरण की चोरी कर ले गए थे। इसके लिए सीबीआई, सीआइडी आदि विभिन्न जांच दलों द्वारा जांच की गई। इसके बाद भी पुलिस मामले के उद्भेदन में विफल रही।

कैलास-मानसरोवर यात्रा मार्ग बंद


पिथौरागढ, जागरण संवाददाता। भारी वर्षा के कारण कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग रविवार को भी बंद रहा।

भारी वर्षा के कारण तीन दिन से बंद पडा कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग रविवार को भी आवाजाही के लिए नहीं खुल सका। यह मार्ग तवाघाट, तीनतोला, वर्तीगाड आदि स्थानों पर बंद है।

चौबीस सौ अमरनाथ यात्रियों का जत्था रवाना


जम्मू। दक्षिण कश्मीर के हिमालय में 3,888 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ पवित्र गुफा की यात्रा के लिए 2,401 श्रद्धालुओं का नया जत्था बुधवार यहां से रवाना हुआ।

अधिकारियों ने कहा कि इस जत्थे में।,514 पुरूष, 572 महिलाएं, 62 बच्चे और 253 साधु हैं जो भगवती नगर के आधार शिविर से 70 वाहनों के काफिले के साथ सुबह चार बजे भारी बारिश के बावजूद रवाना हुए। जम्मू के विभिन्न हिस्सों में भारी बारिश हो रही है। उन्होंने कहा कि इन श्रद्धालुओं के शाम तक बालटाल और पहलगाम पहुंचने की संभावना है जहां से ये पवित्र गुफा की ओर रवाना होंगे।

इस बीच, श्रीनगर से मिली खबरें के मुताबिक, गत 30 जून को यात्रा शुरू होने के बाद बीते 21 दिन के दौरान अब तक 2,65,816 श्रद्धालु पवित्र गुफा के दर्शन कर चुके हैं।

Thursday, March 25, 2010

Outsourcing Services

IT outsourcing is what to do when, otherwise, their perspectives on products and services that are not able to offer. Many business owners think they need to know everything. They fear they can not provide all services under the sun.

Best of the computer industry is that there are a lot of people that can be used for outsourcing services. When lit, the concentration should be on getting the business. You need to spend time networking and relationship marketing.

Time to take time for it, has to rely on outsourcing services - which simply is not enough to learn everything that was requested.

Instead of losing the deal, who wants to be able to offer potential customers the services they need. For this, they are essentially two alternatives for IT outsourcing services:

1. Show the reference working relationships with other technology providers in its niche area
2. Establishing partnerships and subcontracting relationships

The quickest and easiest to configure their IT outsourcing services is the creation of partnerships and subcontracting relationships. This is a fast and effective way to address the issue.

Of course, if you continue to receive many requests for the same type of IT services, then you probably should consider getting the skills to offer in the house. When there is a need large enough, then the time and money invested to make sense. Until then, however, outsourcing is the best option.

Bottom Line on Outsourcing services

Like it or not you can not know everything. When prospects ask for services not provided, instead of losing the deal, look to outsourcing of IT services in place. Reference Building relationships with other segments of IT service providers or setting up subcontractor or partnership agreements. This way you keep your client and be open to the possibility of offering the service itself to the road.


When you hear the term outsourcing, your first thought might be the outsourcing of programming and application development to India, Europe, or Ukraine. The issue of moving jobs overseas to such countries has been a hot political issue. This outsourcing has led to a boom in technology abroad, but it has undoubtedly hurt the development of programmers and professionals here in the U.S.. This has also created unexpected delays, additional costs and even legal costs when projects where not completed on time.

However, the term actually describes the decision to have another solutions provider of information technology management of part of the activities of the department. And the range of services can be anything from the network to monitor the hardware maintenance business. Of course you can outsource your IT services solutions for information technology providers in Boston and New York.

Outsourcing is increasingly necessary due to the growth of small and medium enterprises. Large companies can afford the cost of implementation and management of information technology. IT services are increasingly complex based devices due to the integration of Internet and web-based applications. Since the large companies have the financial resources and internal IT staff, who may be able to handle the demands of technological advances. Even large IT departments, however, still face challenges in finding staff with expertise, and may even appear to outsource some of their tasks in information technology.

For small and medium enterprises with an IT staff of 4 to 10 administrators, programmers and administrators, it is almost impossible to manage all IT services. Are strained to the limit to establish networks that can include wireless connectivity and connections through Internet connections vulnerable. The monitoring of network performance and other management tasks as mundane as help desk may be too much for management. And this is assuming that the company has staff with the necessary skills. Many people working IT staff may face language problems.

Offshore Application Development

Outsourcing software application development can provide some benefits when particular types of programming in question. The availability of cheaper programmers can lead to faster product development and in the past, maybe in the budget. The companies do not face the issue of finding and hiring the right programming star when outsourced to a company that has that talent in place, ready to go. With the fall of U.S. dollar However, not much of a deal to outsource programming activities nowadays. The cost of developers in India is growing 10% per year.

Some IT services can not be shipped offshore or overseas. Design and implement a network for example, is in the hands of an intense collaboration with department managers and business managers. Expectations must be clear and the supplier must be legally responsible. Even the remote control and IT security can be ineffective when managed by someone 12 time zones away. If the competent personnel during the day are hard to find, the change of the night can leave much to be desired in terms of competition.