
बाबा बर्फानी गुफाकी खोज 16वींशताब्दी में एक मुसलमान गडरिएने की थी। हालांकि यात्रा की संपूर्ण व्यवस्था श्रीअमरनाथश्राइनबोर्ड संभालता है, लेकिन आज भी चढावे का चौथा हिस्सा उस परिवार के वंशजों को जाता है। अस्वस्थ और चलने में अक्षम यात्रियों को पौनी पर बिठाकर पवित्र गुफातक ले जाने वाले और सामान ढोने वाले कुली आदि सभी मुस्लिम संप्रदाय के होते हैं। उनके लिए आर्थिक संबल प्रदान करने वाली इस यात्रा का वे साल भर इंतजार करते हैं। श्रद्धालुओं की सेवा में लगे लंगर वालों के चेहरे पर किसी धर्म या जाति के चिह्न नहीं, बल्कि शिव की भक्ति के भाव नजर आते हैं। [शुक्ल पक्ष में बढता है शिवलिंग]समुद्र तल से 13,600मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुफाजम्मू-कश्मीर के उत्तर-पूर्व में है। 16मीटर चौडी और लगभग 11मीटर लंबी यह गुफाभगवान शिव के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। इस गुफामें प्राकृतिक हिमलिंगबनता है। गुफामें जगह-जगह से पानी टपकता रहता है, जिससे छोटे-बडे कई हिम खंडों का निर्माण हो जाता है। भगवान शिव का हिमलिंगप्राकृतिक रूप से ठोस बर्फ का होता है। शुक्ल पक्ष के दौरान इस हिमलिंगका आकार अपने आप बढने लगता है, जबकि कृष्ण पक्ष में चंद्रमा के आकार के साथ इसका आकार भी घट जाता है।
[हर आम और खास की यात्रा] बाबा बर्फानी की इस पवित्र यात्रा में सभी श्रद्धालु एक बराबर होते हैं। यहां कोई भी वीआईपी नहीं होता। सभी को 15रुपये के यात्रा पंजीकरण के साथ ही यात्रा करनी होती है। ठहरने के लिए जम्मू और पहलगाममें सभी यात्रियों के लिए एक समान निशुल्क व्यवस्था होती है। इस बार से हेलीकॉप्टरका किराया 2450रुपये होने की वजह से आम यात्री भी इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं।
[प्रकृति से मिलाप की यात्रा] यात्रा की शुरुआत आधार शिविर जम्मू से होती है। जम्मू का मौसम धूप और गर्मी वाला होता है, वहीं जम्मू से ऊधमपुरकी तरफ बढते हुए हवा में हल्की नमी का एहसास होने लगता है। यात्रा की औपचारिक शुरुआत पहलगामसे होती है। यात्रा मार्ग में पडने वाली शेषनाग झील नीले दर्पण के समान लगती है, वहीं लिद्दरदरिया की अनियंत्रित लहरें यात्रियों को अपना वेग दर्शाती हैं। पिस्सुटॉपकी चढाई चढते हुए पहाडों की कठिन जिंदगी का अनुभव होता है। यहां आकर प्राकृतिक और आध्यात्मिक सुख का अनुभव होता है।
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